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आध्यात्मिक नियम

जिस प्रकार भौतिक नियम है जो भौतिक संसार को नियंत्रित करते है, उसी प्रकार आध्यात्मिक नियम भी है, जो परमेश्वर के साथ आपके संबंध को नियंत्रित करते है।

क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई विश्वास करें व नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए। (यूहन्न 3:16)

परमेश्वर की योजना

(यीशु ने कहाँ) मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ। (ताकि उसमें संपूर्णता योजना हो - यूहन्ना 10:10)

क्या कारण है कि अधिक लोग बहुतायत के जीवन का अनुभव नही करते ?

क्योंकि...................


मनुष्य पापी है

इसलिए की सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है। (रोमियों 3:23)

मनुष्य अलग हो चुका है

मनुष्य को इसलिए रचा गया कि वह परमेश्वर की संगति में रहें, परन्तु अपनी ज़िद व स्वेच्छा के कारण उसने अपनी स्वतंत्रता से इच्छा पूरी करना चुन लिया और उसका परमेश्वर से संबंध टूट गया। यह स्वेच्छा जो विरोध अथवा उपेक्षा के रुप में प्रगट होती है, बाइबल में लिखे पाप का यह प्रमाण है।

मनुष्य पृथक है

क्योंकि पाप का फल तो मृत्यु है - परमेश्वर से आध्यात्मिक अलगाव।(रोमियों 6:23)

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यह चित्र यह दर्शाते है कि परमेश्वर पवित्र और मनुष्य पापी है। परमेश्वर से अलग होने के कुछ परिणाम - एक विशाल खाइ दोनों को पृथक करती है। मनुष्य अपने अच्छे कर्मों, सिद्धान्तों व दर्शनों इत्यदि के माध्यम से अनन्त जीवन तक पहुँचने के लिए सतत कोशिश करता है परन्तु उसकी कोशिश निष्फल ठहरती है।

मनुष्य के इस पवित्र दुवीधा का एकमात्र हल तीसरा नियम देता है.....

 


वे हमारे लिए मरे परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है की जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा।(रोमियों 5:8) वे मरे हुओं में से जी भी उठे मसीह हमारे पापों के लिए मर गए....वे गाडे गए... और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठे और कैफा को तब बारहों को दिखाई दिए। फिर पाँच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिए....। (1 कुरि.15:3-6) वे ही एक मार्ग है यीशु ने उन से कहाँ मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ, बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नही पहुँच सकता।(यूहन्ना 14:6)

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जो खाइ हमें परमेश्वर से पृथक करती थी उसे उन्होंने अपने पुत्र यीशु के द्वारा मिला दिया जो सलीब पर हमारे स्थान पर मरे।

 यह तीन नियम जान लेना ही पर्याप्त नही है......


 हमारे लिए यीशु को ग्रहण करना आवश्यक है 

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते है।(यूहन्ना 1:12)

 हम यीशु को विश्वास द्वारा स्वीकार करते है 

 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से आपका उद्धार हुआ है, और यह आपकी ओर से नही , वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमंड करें। (इफिसियों 2:8,9)  जब हम मसीह को स्वीकार करते है, तो हम नया जन्म प्राप्त करते है (यूहन्ना 3:1-8 पढे़)

 हम यीशु को स्वीकार करने के लिए व्यक्तिगत निमंत्रण देते है 

 (यीशु का आपको व्यक्तिगत निमंत्रण) देख मैं द्वारा पर खडा हुआ खटखटाता हूँ, यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करुँगा और वह मेरे साथ।(प्रकाशित वाक्य 3:20)

 यीशु को स्वीकार करने का अर्थ है अहं की ओर से परमेश्वर की ओर फिरना, विश्वास करना कि यीशु हमारे जीवन में आएंगे, हमारे पापों को क्षमा करेंगे और हम जो चाहेंगे वह हमें बनाएगा। उन के दावो पर बोधिक सहमति देना अथवा भावत्मक अनुभव प्राप्त करना पर्याप्त नही है बल्कि हम यीशु मसीह को क्रिया के स्वरूप में विश्वास के द्वारा प्राप्त करते है।

 ये दो वृत दो प्रकार के जीवनों का प्रतिनिधित्व करते

 

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  अहं - अहं द्वारा नियंत्रित जीवन
अहं अथवा सीमित में अधीन
अहं द्वारा नियंत्रित रुचियाँ
जो कलह व निराशा उत्पन्न करती है
यीशु जीवन के बाहर।

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 यीशु-यीशु द्वारा नियंत्रित जीवनजीवन के सिंहासन पर यीशु अहं यीशु के अधीन ह

 

 


कौनसे वृत आपके जीवन को दर्शाते है ?

आप अपने जीवन का प्रतिनिधित्व करने के लिए कौनसा वृत लेना चाहेंगे ?

निम्नलिखित वर्णन से ज्ञात होता है कि आप यीशु को कैसे ग्रहण कर सकते है।

परमेश्वर आपके मन को जानते है और वह आपके शब्दों में उतनी रुचि नही लेते जितना आपके मन में। निम्नलिखित प्रार्थना का उदाहरण देखिए।

प्रार्थना......प्रभु यीशु मुझे आपकी आवश्यकता है। मेरे पापों के लिए क्रूस पर मरने के लिए धन्यवाद मैं अपने जीवन के द्वार खोलकर आपको अपने प्रभु और मुक्ति दाता के रूप में स्वीकार करता हूँ। मेरे सारे पापों को क्षमा करने के लिए और मुझे अनन्त जीवन देने के लिए आप को धन्यवाद। मेरे जीवन के सिंहासन पर अपना नियंत्रण रखे जैसा मनुष्य आप मुझे बनाना चाहते है वैसा ही बनाए - आमीन।

क्या यह प्रार्थना आपके हृदय की इच्छा को प्रगट करती है ?
 जी हाँ...

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